Putrada Ekadashi 2021: पुत्रदा एकादशी पूजा के बाद पढ़ें व्रत कथा

News Mug
4 min readJan 24, 2021

पुत्रदा एकादशी 2021(Putrada Ekadashi 2021 Katha): सनातन धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत सुयोग्य संतान प्राप्ति की कामना के उद्देश्य से रखा जाता है. हिंदू धर्म में विवाहिता महिलाएं पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को साक्षी मानकर इस व्रत को रखना शुरु करती है.

पुत्रदा एकादशी 2021 (Putrada Ekadashi 2021 Katha) : आज 24 जनवरी 2021, रविवार को पुत्रदा एकादशी है. प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विवाहिता महिलाएं संनात प्राप्ति के लिए यह व्रत करती है. जिसमें भगवान विष्णु की आरधना की जाती है. लोक किदवंती है कि जिन महिलाओं को संतान प्राप्त नहीं होते वह महिलाएं व्रत को रखना आरंभ करें तो उन्हें जल्द ही पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है.

सनातन कैलेंडर के अनुसार पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है- पुत्रदा एकादशी सावन और पौष माह में भी पड़ती है. आइए लेख के जरिए जानते हैं पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा ….

पुत्रदा एकादशी कथा:

पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि , महाराज युधिष्ठिर पूछते- हे भगवान! आपके द्वारा सफला एकादशी का महत्व बताया गया है, अब आप यह बतलाइए कि पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवों का पूजन अर्चन किया जाता है.

पूछे गए सवाल के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण बोलते- हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है. जिसमें नारायण भगवान का पूजन किया जाता है. व्रत का उद्देश्य संतान की मनोकामना की प्राप्ति है. पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है. व्रत को करने वाली महिलाओं को तपस्वी, विद्वान और बुद्धिमान पुत्रधन की प्राप्ति होती है. इसकी मैं एक कथा सुनाता हूँ तो तुम ध्यानपूर्वक सुनो. Also Read : अनंत चतुर्दशी व्रत कथा पूजन विधि । anant chaturdashi puja vidhi

प्राचीन समय की बात है. भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा हुआ करते थे. जिनका कोई पुत्र नहीं था. राजा की पत्नी का नाम शैव्या था. संतान नहीं होने के कारण रानी हमेशा चिंतित रहती थी. राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और विचार करते थे कि हमको कौन पिंड दान करेगा. अकूत संपत्ति होने के बाद भी राजा को संतोष नहीं था.

राजा को हमेशा इस बात की चिंता सताती थी कि, यदि उनकी संतान नहीं होगी तो मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. चिंता में डूबे राजा ने अपने शरीर को त्याग देने की योजना बनाई. लेकिन आत्मघात को पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया.

एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकला. विचरण करते हुए राजा ने पक्षियों और वृक्षों को देखा. राजा ने देखा कि हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है. Also Read : संकट चतुर्थी चौथ माता की कथा

वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. राजा के मन में विचार आने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?

संतान कामना के वियोग में राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में भटकने लगा. कुछ दूरी पर राजा ने एक तालाब दिखाई दिया. तालाब के चारों ओर ऋषियों के आश्रम बने हुए थे. आश्रम देख घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया.

राजा को देख ऋषियों ने कहा कि, हे राजन! हम तुमसे बेहद ही खुश हैं. तुम्हारी क्या मनोकामना है, राजा ने ऋषियों से प्रश्न किया महाराज आप कौन हैं. मुनियों ने जवाब दिया आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं.

यह सुनकर राजा ने कहा ऋषिवर मेरी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए. ऋषि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा.

राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ. जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.

Originally published at https://newsmug.in on January 24, 2021.

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