मदन लाल ढींगरा की जीवनी। Madan lal dhingra biography ऐसा आजादी का दीवाना

मदन लाल ढींगरा की जीवनी। Madan lal dhingra biography । मदनलाल ढींगरा, एक ऐसा क्रांतिकारी जिसकी देशभक्ति को परिवार के बंधन भी नहीं बांध पाए मोह में
गुलाब भारत के दिनों में शहीद हुए मदन लाल ढींगरा का जन्म 1887 ईस्वी में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ था. ढींगरा के पिता राय साहब डा.दित्तामल ढींगरा बड़े अंग्रेजों की चापलूसी करते थे. लाहौर में शिक्षा पूरी करने के पश्चात ढींगरा को परिवारिक व्यवसाय में और एक दो दफ्तरों में नौकरी के लिए भेजा गया.
लेकिन मदनलाल का नौकरी में मन नहीं सका. इनके के बड़े भाई कुंदनलाल अपने व्यापार के सिलसिले में लन्दन आया जाता करते थे. जिसके कारण स्नातक की शिक्षा के लिए 1906 में मदन लाल को भी वही भेज दिया गया. जहां पर ढींगरा ने लन्दन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में प्रवेश लेकर शिक्षा पूरी की.
मदन लाल बचपन से क्रांतिकारी प्रवृत्ति के बालक थे. दूसरे शब्दों में कहा जाएं तो ढींगरा को बचपन से ही अपने देश से प्रेम था. सन 1906 में लन्दन भारत के वीर क्रान्तिकारियो का केंद्र हुआ करता था. श्यामजी कृष्ण वर्मा 1906 में लंदन ही थे , विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं पहुचे थे.
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श्यामजी कृष्ण वर्मा ने “इंडिया होमरूल सोसाइटी” की स्थापना की थी और भारतीय छात्रों के रहने की व्वयस्था के लिए “इंडिया हाउस” की शुरुआत की. वर्मा का यह हाउस छात्रों के राजनितिक प्रषिक्षण का सेंटर था. विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देने के लिए सावरकर ने “अभिनव भारत” नामक एक संस्था बनाई. सावरकर ने मदनलाल को “अभिनव भारत” संस्था का सदस्य बना लिया.
लंदन में भारतीय सेना का एक अवकाश प्राप्त अधिकारी कर्नल विलियम वायली पहुंचा था. अधिकारी का काम भारतीय छात्रों की जासूसी करना था. विलियम ने मदनलाल के पिता को सचेत किया था कि, वह अपने बेटे को इंडिया हाउस से दूर रहने को कहें.
भारतीय क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजो के जासूस वायली की हत्या की योजना बनाई. जिसकी जिम्मेदारी मदनलाल ढींगरा को दी गई. हत्या की तैयारियों को लेकर ढींगरा ने कुछ समय तक निशाना साधने का अभ्यास किया. जिसके बाद 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ने एक सावर्जनिक समारोह के दौन कर्जन वायली को गोली मार कर हत्या कर दी.
खास बात है कि सन 1906 में किसी भारतीय द्वारा ब्रिटेन में की गई यह पहली राजनितिक हत्या थी. गोली मारने के बाद ढींगरा वहीं खड़े रहे जिससे ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. घटना से आहत ढींगरा के पिता ने वायसराय को लिखा कि उसने मेरे बेटे ने मेरे मुंह पर कालिख पोत दी. हत्या के बाद मदनलाल को कोर्ट में पेश किया गया. जज के सामने मुखातीब होते हुए उन्होंने कहा कि, मैंने जानबुझकर विशेष उद्देश्य से यह हत्या की है. ब्रिटिश अदालत ने 23 जुलाई 1909 को फांसी की सजा सुनाई और 17 अगस्त 1909 को 22 वर्ष का यह देशभक्त फांसी के फंदे पर हंसता हुआ झूल गया. हिन्दुरिती से दाह संस्कार की उसकी अंतिम इच्छा की उपेक्षा करके उसका शव एक चारदीवारी के अंदर दफना दिया गया.
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Originally published at https://newsmug.in on February 16, 2021.