शीतला अष्टमी या बसोड़ा की कथा, महत्व तथा विधि Shitla Ashtmi 2021 Katha
शीतला अष्टमी होली पर्व के ठीक आठ दिनों बाद मनाई जाती है, अर्थात अष्टमी को. शीतला अष्टमी इस बार 5 अप्रैल 2021, सोमवार को है. सनातन धर्म में शीतला अष्टमी के पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिषशास्त्र की मानें तो मां शीतला का पूजन कई प्रकार के दुष्प्रभावों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है. किदवंति है कि, माता शीतला का व्रत रखने से तमाम प्रकार के रोगों से निजात मिलती है. शरीर की बीमारियां दूर भाग जाती है. इसके साथ ही पूरे साल सभी लोग चर्म रोग तथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहते हैं.(Shitla Ashtmi Basoda Katha)
शीतला सप्तमी या बसौड़ा भी कहा जाता है, रंगों के त्योहार होली के सप्तमी या अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. शीतला माता की पूजा चेत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ हो जाती है.यह पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा बृहस्पतिवार के दिन से शुरू की जाती है. साल 2021 में सोमवार के दिन ही शीतला सप्तमी पड़ रही है.
शीतला माता की कथा इस प्रकार से है-
प्राचीन समय की एक बात है. एक गांव था जिसमें एक कुम्हारन रहती थी. कुम्हारन बसौड़ा के दिन शीतला माता की पूजा करती और एक दिन पहले का बनाया हुआ ठंडा और बासी भोजन को ग्रहण करती थी. कुम्हारन के गांव में अन्य कोई भी महिला शीतला माता की ना तो पूजा करती थी, और ना ही कोई ठंडा भोजन खाती थी.
एक दिन उस गांव में एक बुढ़िया आई. उस दिन शीतला सप्तमी थी. वह बुढ़िया हर किसी ग्रामीण के घर जाकर कहने लगी “कोई मेरी जुएँ निकाल दो, कोई मेरी जुएँ निकाल दो.” बुढ़िया जिस घर में जाती हर घर से बुढ़िया को यही जवाब मिलता कि तुम बाद में आना, अभी हम खाना बना रहे हैं. बुढ़िया कुम्हारन पहुंची, उसने कुम्हारन से कहा कि मेरी जुएँ निकाल दो. कुम्हारन खाली थी, क्योंकि उस दिन उसने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शीतला माता का व्रत रखा था, उसे खाना नहीं बनाना था. कारण वह उस दिन बासी और ठंडी रोटी खाती थी.
कुम्हारन ने कहा “बुढ़िया मां आओ मैं तुम्हारी जुएँ निकाल देती हूं.” कुम्हारन ने बुढ़िया की सारी जुएँ निकाल दी. शीतला माता जिन्होंने बुढ़िया का वेश बना रखा था, वह कुम्हारन से बहुत प्रसन्न हुई. जिसके बाद उन्होंने कुम्हारन को अपने असली रूप के दर्शन दिए. अब हुआ यूं कि उसी दिन कुम्हारन के गांव में आग लग गई और सारा गांव जलकर राख हो गया. लेकिन कुम्हारन के घर पर कोई भी आंच नहीं आई. गांव वालों ने कुम्हारन से पूछा कि भला तेरा घर कैसे बच गया इस आग से. कुम्हारन बोली “यह तो शीतला माता की कृपा है जिन्होंने मेरा घर बचाया है.” कुम्हारन ने गांव वालों को शीतला माता व्रत के बारे में विस्तार से बताया.
गांव में आग लगने की बात राजा के कान तक पहुंची. जिसके बाद राजा ने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा कर मुनादी करवा दी कि अब से सब लोग शीतला माता की पूजा करेंगे और बसोड़ा के दिन बासी और ठंडा खाना खाएंगे. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता का भोग लगाने के लिए एक दिन पहले ही भोजन बना लिया जाता है. इस बांसी भोग को बसोड़ा कहा जाता है और अष्टमी के दिन इसे नैवेद्य के रूप में देवी को चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है.
मालूम हो कि, उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्यौहार को बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. लोक मान्यता है कि शीतला अष्टमी के बाद बासी खाना ग्रहण नहीं जाता है. यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जिस दिन बासी खाना खा सकते हैं. इतना ही नहीं शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य है. शीतला देवी का वाहन स्कंद पुराण में गर्दभ बताया गया है. शीतला माता अपने हाथ में कलश ,सूप, झाड़ू तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं, जो इस बात का प्रतीक है चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है, सूप से रोगी की हवा की जाती है, झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं और नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते, कलश का महत्व है की रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है और चेचक के दाग मिटाने के लिए गधे की लीद से लिपा जाता है. जिस दिन शीतला माता की पूजा होती है उस दिन घर में चूल्हा नहीं चलाया जाता.
इस दिन अलसुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए. जिसके बाद संकल्प लेकर पूरे विधि विधान से मां शीतला की पूजा करें. इस दिन बासी भोजन का भोग लगाना चाहिए इस भोग में आप शीतला माता के पूजन के लिए भोग में पूरी, पापड़ी, हलवा, लापसी , चावल , राबड़ी अपनी इच्छा के अनुसार जैसी परम्परा हो बनाये. माता का व्रत पूरे विधि विधान और सच्चे मन से करने पर शीतला माता धन-धान्य, सुख -संपत्ति, बच्चों पर चेचक और आरोग्य का आशीर्वाद देती हैं.
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Originally published at https://newsmug.in on March 9, 2021.